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Channel: Scribbles of Soul
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फुर्सत के पल : 7

ब्रह्म मुहूर्त… अस्त होते चन्द्रमा के मद्धम प्रकाश में, उत्श्रृंखल सागर के किनारे गहरी गीली बालू… और दायें पांव के नख के अग्र भाग से अपना नाम अंकित करती एक परछाईं… नेपथ्य में शंखनाद और मन के कोने में...

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खुशियां

सप्तमी का चांद लुक्की छिप्पी सी चांदनी कोहरे की चादर सितारों से जड़ी हुई अंगड़ाइयां लेती रात सुबह-सवेरे भोर की पहली किरण से मिली हौले से मुस्काई ज़ुल्फ़ें झटकीं सोने की धूल आईने पे उभर आई चाँद का नूर और...

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दर्दीले फ़साने

इश्क़ विश्क न पूछो हमसे सब दर्दीले फ़साने हैं चन्दा की उम्मीद में बैठे जाने कितने तारे दीवाने हैं पंछी सा उड़ते उड़ते पिंजरे में क़ैद हो जाने हैं इश्क़ विश्क न पूछो हमसे सब दर्दीले फ़साने हैं शायर घसीटे कलम...

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फुर्सत के पल : 8

दूध की दो बूँद पानी में गिरते ही एक हल्का सा परिवर्तन ले आती हैं.. रंग, रूप, प्रकृति में… हाँ, दूध का स्वभाव है, आत्मसात हो जाना, इसलिये पूर्ण रूप से घुल जाता है, पानी के छोटे छोटे कणों में… अपनी...

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फुर्सत के पल : 9

फिर खिले हैं सेमल.. ज्यों भूरी भूरी टहनियों पर लाल-पीले बल्ब टांग दिए हों किसी ने.. जानते हैं ये बहुत भाते हैं मुझे… परन्तु रंग-रूप, आकार-प्रकार के कारण नहीं.. बल्कि देखा जाये तो इनमें नैसर्गिक सौंदर्य...

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कविता

कविता गुलाम नहीं शब्दों की ये तो भावों की सहचरी है दिल की बांहों में बांहें डाल इतराती है दिमाग की सरगोशियों से घबरा जाती है घूमती है निडर हो आंखों के घेरों में डर जाती है कलम की नोंक पे सजे शेरों से...

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दिल दहल गया आज

दिल दहल गया आज बुदबुदाते होंठों से जाने कौन से शब्द उकेरता, वो लगातार उसे घूरे जा रहा था। हाथ में पत्थर लिए आक्रामक मुद्रा में उसका सिर फोड़ने को बिल्कुल तैयार। निरीह जानवर टकटकी बांधे उसे देखता, इस बात...

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मौन का कोलाहल

कागज़ के पुर्ज़े काले नीले करते चमक उठतीं थीं आँखें अब एक गहरी उदासी है बेरंग मछलियां छटपटाती हैं सिसकियां किनारों से टकरा अपनी ही अनुगूंज में खो जातीं हैं झील धुंधली हो चली प्रतिबिंब झलकते नहीं गर्म हवा...

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तारे

आज आसमान एकदम साफ़ नज़र आ रहा है चमक रहे हैं असंख्य तारे जैसे कारी चुनरी पे काढ़़ दिए हों ढेरों सितारे पहले पहल तो बस कुछ सात आठ ही दिखे पर जब ध्यान लगाया तो पाया जग सारा एक के साथ अनेक का लगाते नारा कुछ...

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वक्र चाल

दोपहर के दो बजे, थके मांदे परिंदे पेड़ों की ऊंची डालियाँ छोड़, नन्ही झाड़ियों में छाँव तलाश रहे हैं… आम के पेड़ पर कच्चे फल अनमने से हैं… गर्मी से उनकी खट्टास का आदान प्रदान जारी है… बोझिल पत्ते हौले हौले...

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उनींदी

उनींदी अंखियों के पैरहन में लिपटी ख्वाबों की मासूम बूंदें बारिश बन धरा पर आई हैं सौंधी सी खुशबू है घुली सांसों में ढीले से जूडे़ में सहेजे गेसुओं पे बेला की कलियां मुस्काई हैं मई की तपिश को शीतल करती...

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सागर किनारे

सागर किनारे पाँव पाँव चलने का मन है आज… चांदनी रात में नहीँ बल्कि सिखर दुपहरे…. जब हर कोना सूरज की गर्मी से तप रहा हो… दूर दूर तक केवल सुनहली धूप हो…आँखों में चमचमाती किरणें….चेहरे पे पसीने की...

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जीने की गूंज

अच्छा लगता है कभी कभी यूं ही खिड़की में खड़े होना उन पेड़ों को हर झौंके के साथ लहराते देखना वो मैना का चहकना कोयल का कूकना गौरैया का फुदकना चीलों का चीखना इन सब आवाज़ों में जीने की गूंज सुनाई देती है न !...

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व्यस्त हूँ

व्यस्त हूँ, रहना चाहती हूँ…हर पल, हर घड़ी….फाइलों के ढेर में सिर घुसाए बैठी हूँ …..कंप्यूटर पर बिन आवाज़ दौड़ती उँगलियाँ, शब्दों के आढ़े तिरछे रेखाचित्र उभार रहीं हैं…गर्म चाय का घूँट भरती हूँ…बेख्याली में...

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ये सुबह प्यारी है

सुबह के पांच बजते बजते, 10 बाय 10 के कमरे की कृत्रिम हवा बासी लगने लगी है… पलकें भारी हैं.. नींद अपना आधिपत्य त्यागने को तैयार नहीं.. पर मन भर चुका…सोच की दो बूँद और.. और बस छलक जाएगा.. मैं करवटें...

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भीनी सी

भीनी सी खुशबू महकी कहीं यादों का बगूला बहकने लगा गुलमोहर की पाक पनाह में झूलती नन्हीं सुनहली कलियाँ खामोश सहर रुकी सदाएं झुकी सी पलकें ख्वाब सजाएं जाने साज़िशें क़ायनात की या बस इक आहट तेरे आने की Anupama

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Glass jars

At times, we feel so lonely. As if we are the only person left behind on an uninhabited island after a shipwreck. Though, it would be an adventure, imagining yourself as Tom Hanks, single handedly,...

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वास्तविक

किसी ने कहा ये क्या हर पल फूल पौधों पेड़ों पक्षियों पर लिखती हो कुछ वास्तविक लिखो सड़कों के गढ्ढों पर बढ़ते करप्शन पर विफल हो चुके प्रशासन पर गरीबों के उत्थान पर। हमने भी जुगत भिड़ाई सोचा चलो इनसे भी दो...

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Earthquake

Earthquake on 12 may 2015 साधारण सा ही दिन था आज कुछ ऊबाऊ भी घिरी थी अनजान भीड़ में कोई अपना पास नहीं दफ्तर की रेलमपेल में उसी पुराने सियासती खेल में अमूमन बीत जाता है वक्त बेशकीमती ईमारत में सजे...

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जान

खनकती हंसी उदासी में डूब मरी चमकीले ख़्वाब फलक से औंधे गिरे चींटियों की बाम्बियों में सांप दिखे कौओं के शोर में कोयल के पर टूटे कचकचाकर गिरी जो बिजली कितने परिंदों के आशियाँ छूटे अश्क़ों में बहता नमकीन...

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