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Earthquake

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Earthquake on 12 may 2015
साधारण सा ही दिन था आज कुछ ऊबाऊ भी
घिरी थी अनजान भीड़ में कोई अपना पास नहीं
दफ्तर की रेलमपेल में उसी पुराने सियासती खेल में
अमूमन बीत जाता है वक्त बेशकीमती ईमारत में
सजे गुमशुदा कागजों की ईबारत में
कुछ यूँ आदत हो चुकी है ढर्रे पर जीने की कि
ये शोरगुल की आवाजें अब सुनाई भी नहीं देतीं

पर अचानक इक बदलाव आया
कोई पास आकर कातर स्वर में चिल्लाया
मर जायगी दब जायगी बाहर निकल आ
मेरे ही जैसे कुछ पांच चेहरों ने एक साथ सर उठाया
शायद फिर से भूकंप आया
धरती डोल रही थी हमारी खोई
मनस्थिति मुखर हो चली थी

दिमाग हरकत में आया साधारण सा दिन
आपाधापी में बदलने लगा
मंजर वही था पर नजारा बदलने लगा
हाँ सभी आतुर थे खुद को बचाने को
जाने क्या बचा है जिसे जिलाने को
यकायक माहौल में गरमी आई फोन बजने लगे
खबरें मिलने लगीं हाँ है भूचाल ही
सचमुच धरा नियंत्रण खो रही
पर विश्वास करना आसान नहीं
मन की उथलपुथल भी भूकंप से कम तो नहीं

दो तीन मिनट खौफ का बाजार गरम रहा
फिर हौले हौले हंसी ठठ्ठा गुंजाने लगा
बेफिक्री का धुआं सर उठाने लगा
जीवन कायम था एक खतरा और बीत चुका था
और यंत्रवत चलती इस मुर्दा दुनिया में
हर इंसान फिर खुद में खो चुका था !
Anupama


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