इश्क़ विश्क न पूछो हमसे
सब दर्दीले फ़साने हैं
चन्दा की उम्मीद में बैठे
जाने कितने तारे दीवाने हैं
पंछी सा उड़ते उड़ते
पिंजरे में क़ैद हो जाने हैं
इश्क़ विश्क न पूछो हमसे
सब दर्दीले फ़साने हैं
शायर घसीटे कलम कहीं
कूची से भर दे रंग कोई
परवानों से जलते जलते
दम तोड़े है शमा कहीं
सरगम के उठते ताल में
सारे शब्द खो जाने हैं
ये इश्क़ विश्क न पूछो हमसे
सब दर्दीले फ़साने हैं
बसंत बहार के स्वागत में
जाने कितनी शाखें पत्ते
अंगीठी के कोयलों से
धुआं धुआं हो जाने हैं
ये इश्क़ विश्क न पूछो हमसे
सब दर्दीले फ़साने है
सब दर्दीले फ़साने हैं !!