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दिल दहल गया आज

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दिल दहल गया आज

बुदबुदाते होंठों से जाने कौन से शब्द उकेरता, वो लगातार उसे घूरे जा रहा था। हाथ में पत्थर लिए आक्रामक मुद्रा में उसका सिर फोड़ने को बिल्कुल तैयार। निरीह जानवर टकटकी बांधे उसे देखता, इस बात से बिल्कुल अनजान कि वो इंसान विश्वास पात्र नहीं। उस आदमी का अपने दिलोदिमाग पर संतुलन नहीं। वो तो छूटते ही मार सकता है पत्थर, छुरा, तलवार भी। हालांकि ऐसा कर तो कोई भी सकता है। बस, लोकलाज की चिंता व कानून की जकड़ संभाल लेती है !

वरना देर ही कितनी लगती है इंसान को शैतान बनने में, बस एक भीड़ का जुटना, कड़क आवाज़ में किसी का चिल्लाना और आपके अन्दर के जानवर को जगाना ही काफी है | सेकंडों में इंसानियत भूला दी जाती है | खून का उबाल उसे लाल से काला बना देता है, एक घोर अन्धकार की ओर प्रेरित करता है और आदमी भूल जाता है की किसी बेक़सूर को मारने से न कभी कोई क्रांति आई है न किसी का भला हुआ है | केवल सियासतें पलटी जाती हैं | आम इंसान जहां है, वहीँ मरने के लिए छोड़ दिया जाता है, अपने शनिक क्रोध की ज्वाला में खुद को ही जलाता |

खैर, शुक्र है, इंसान एक दूसरे को समझ पायें हों या नहीं, जानवर हमें बखूबी समझते हैं | भगवान द्वारा दी गई छठी इंद्री का पूर्ण सदुपयोग करते हैं | पागल अपने ध्येय में सफल होता, उससे पहले ही कुत्ता अपनी जान बचा कर भाग गया और मैंने राहत की सांस ली | हाँ, पर वो समझदार जाते-जाते जता गया, आत्म सुरक्षा के लिए लड़ना ही नहीं झुकना भी सीखना पड़ता है, कभी-कभी | जब बस न चले तो चुपचाप पतली गली से सरक जाने में ही भलाई है जनाब !!


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