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दुख का नमक, कविता

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प्रेम अविरल धारा है… ऐसा कोमल अहसास, जो कठोर हृदय को मोम सा पिघला दे… जब प्रेम भाव उमड़े तो स्त्री गुण ही हावी होते हैं मन में… पुरुष भी प्रेम में उतना ही संवेदनशील और कोमल हो उठता है,जितनी कि नारी… तो फिर स्त्री मन तो पहले ही इतना नाज़ुक है, उसका पिघलना कहां कोई अतिशयोक्ति… पर इस बात का एक दूसरा पहलू भी है… कमल की सुंदरता अधिक मोहती है क्योंकि वो कीचड़ में खिल उठता है… स्त्री मन भी वही, कहीं न कहीं बेहद मज़बूत और ज़िद्दी, विपरीत परिस्थितियों में भी अपने चरित्र पर अडिग रहने वाला…

इन्हीं भावों को समेटती आज की कविता “दुख का नमक” मेरे शब्द मेरे साथ पर

इस कविता के बारे में संतोष पटेल जी कहते हैं:

“छायावाद के प्रमुख स्तम्भ जयशंकर प्रसाद के लेख ‘काव्यकला’ में अनुभूति का अर्थ आत्मानुभूति माना गया है जो चिन्मयी धारा से जुड़कर किंचित रहस्यमयी हो जाती है। वही नंददुलारे वाजपेयी आत्मानुभूति को साहित्य का प्रयोजन मानते हैं।

काव्य के संदर्भ में काव्यानुभूति, रसानुभूति, भावानुभूति सौन्दर्यानुभूति का उल्लेख प्रायः समान अर्थ में किया जाता।

‘महादेवी की वेदना’ नामक आलेख में कवि रामधारी सिंह दिनकर कहते हैं कि महादेवी जी का सारा जीवन कर्मठता और आशावाद से ओत प्रोत रहा, उसी प्रकार उनकी वेदना के भीतर भी स्वाभिमान की चिंगारी और शूरता की आग चमकती है।

अनुपमा सरकार की कविता ‘दुख का नमक’ स्त्री मन की अभिव्यक्ति है जिसमें वेदना है, सम्वेदना और स्त्रियों की वास्तविक स्थिति को उल्लेखित किया गया है। यह कविता व्यष्ठि से बढ़ते हुए समष्टिगत हो जाती है। बिम्ब का शानदार प्रयोग है लेविस ने तभी तो बिम्ब को शब्द निर्मित चित्र कहा। जिस तरह अनुपमा इस कविता में बिंबों के माध्यम भावनाओं का निर्माण करती है इससे पदार्थों के आंतरिक सादृश्य की अभिव्यक्ति हो जाती है। शोवाल्टर के अनुसार मनोविश्लेशषणात्मक रचना कह सकते है लेकिन एलिसिया आस्ट्रकर की देह बिंबों से सर्वथा भिन्न है।

बहरहाल इस कविता को आप भी सुनिए।जितनी सशक्त रचना उतनी उद्दात प्रस्तुति। धन्यवाद।”

वहीं फाक़िर जय जी का कहना है कि

“सन्तोष जी आप ने सही कहा यह मूलतः छाववादी संस्कारो की कविता है जिसमे बांग्ला भावुकता का असर भी है। स्त्री की स्थिति देने वाली की है। नमक जैसा तिरस्कार समाज से सह कर भी वह समाज को मधुर ही लौटाती है। बिम्बो का बड़ा सुंदर प्रयोग हुआ है। केदारनाथ सिंह की याद आ गई सहसा मृगछौने जैसे कोमल बिम्ब को सुन के। बिम्बो की जो श्रृंखला लेखिका ने पिरोया है वह कविता को कलात्मक सौष्ठव से भर रहा है। सुंदर काव्य आवृति ने बांग्ला काव्य संस्कृति की स्मृति जगा दी। बधाई सरकार जी को।”

दुख का नमक मेरे शब्द मेरे साथ पर उपलब्ध है


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