Quantcast
Channel: Scribbles of Soul
Viewing all articles
Browse latest Browse all 465

तोड़ दो, कविता पाठ

$
0
0

स्त्री को देवी मानने वाले हमारे देश में आए दिन हत्या और बलात्कार की खबरें सुनने को मिलती हैं… बात भ्रूण हत्या की हो, दहेज के नाम पर ज़ुर्म ढाने की हो, परम्पराओं के नाम पर बेड़ियां पहनाने की हो या बलात्कार जैसे जघन्य अपराध की… लंबी चौड़ी फ़ेहरिस्त है औरत पर किए जाने वाले ज़ुल्मो की… ऐसे माहौल में स्त्री मन क्षुब्ध हो, जब कलम उठाता है तो शब्द नहीं शूल ही बरसते हैं… तोड़ दो कविता, अखबार की सुर्खियों को पढ़ते हुए, भाव विहवल हो लिखी थी… नहीं सहन हुआ था रोज़ रोज़ किसी के जीवन को सिर्फ हेडलाइंस बनकर सुनना और भूल जाना… नहीं जानती कितना समेट पाई उन एहसासों को, पर आज की प्रस्तुति में आहत स्त्री मन ही है, जो व्यथित है, निराश है, और एक बेहतर समाज की आस में इन शब्दों को ढाल बनाकर मुखर हो उठा है… मेरे शब्द मेरे साथ में आज सुनिए मेरी कविता “तोड़ दो”


Viewing all articles
Browse latest Browse all 465

Latest Images

Trending Articles



Latest Images