चंचल रात उनींदी अँखियों से काजल पोंछते धीमे धीमे विदा हो रही है …. आसमान के आगोश में दूज का चाँद उबासियां ले रहा है …. हवाओं संग अठखेलियां करते थके मांदे हरसिंगार …. नारंगी पांवों को हौले से ज़मीं पे टिका नींद के हिंडोले में ऊंघ रहे हैं … दूर कहीं धुंए के बादल अंगड़ाइयां लेते हुए करवटें बदल रहे हैं …. चेहरे पर हल्दी बेसन लगाये सूरज नए दिन का स्वागत करने की तैयारी में जुट गया है … अशोक ने फुसफुसाकर नन्ही गिलहरी को सुबह का अहसास करा दिया है और खुद आँखें मूँदे मुस्कुरा रहा है … सड़क किनारे हरी घास में शिकार ढूंढती मैना …. सर उचक उचक कर अपने साथी को खोज रही है … छत पर कबूतर किसी अलार्म घड़ी सा गूं गूं किए जा रहा है … और मैं ज़िद में चादर सर तक ओढ़े….पलकों को कस कर दबोचे… क्षितिज से आती मदमस्त पवन को महसूस रही हूँ … दिन नया प्रकृति वही … पर फिर भी कितनी सुहानी … शुभ प्रभात ज़िन्दगी
Anupama