गहरे उतरूं शब्दताल में
स्वर व्यंजन से टकराऊं
सामने डोले तेरी सूरतिया
सुधबुध मैं खो जाऊं
इक मूरत से लगन लगी
छैनी सी कलम चलाऊं
पर फिसले ये मन बावरा
बारीकियों में उलझी जाऊं
मुझे न गढ़नी कोई मुरतिया
न लिपियों की शैली ही बुननी
बस कण कण जोडूं बालू गीली
सपनों का महल सजाऊँ !!
Anupama![textgram_1470896734]()