कुछ फिल्में अपने डायलॉग से जानी जाती हैं तो कुछ के डायलॉग ही मूवी की कहानी बयां कर देते हैं…
“चौड़ भी न औकात देखकर रखनी चाहिए… 70 का बन्दा, 150 किलो की रखेगा तो बोझ से दबेगा ही”
अजब सी है न लाइन और अब इसे इमेजिन कीजिए सौरभ शुक्ला के चिर परिचित drunken but in senses स्टाइल में और आप बिल्कुल समझ जायेंगें कि “छलांग” फिल्म से कितनी उम्मीद रखी जाए
राजकुमार राव, एक ऐसा नाम जिसे स्क्रीन पर देखने के लिए आतुर रहती हूं… सो प्राइम पर छलांग के रिलीज़ होते ही देखने बैठ गई थी… राजकुमार ने निराश किया भी नहीं… खड़े बालों, muscled बॉडी के साथ, टिपिकल हरयाणवी accent में पूरी अकड़ के साथ घूमता झज्जर का “यो छोरा” खूब भाया… पहले सीन में ही सौरभ शुक्ला और राजकुमार की केमेस्ट्री अच्छी लगने लगी… और राजकुमार की मां का किरदार निभाती बलजिंदर कौर की एक्टिंग का लोहा वजनी दिखा… उस पर एक लंबे वक्त के बाद सतीश कौशिक और इला अरुण का मूवी में होना, मुझे लुभा रहा था… कुल मिलाकर शुरुआत अच्छी थी।
पर फिर अचानक निर्देशक हंसल मेहता को वेलेंटाइन डे का आउट डेटेड कॉन्सेप्ट सूझ गया… राजकुमार, गुंडों के साथ पार्क में जोड़ों को भगाते और एक बुज़ुर्ग कपल को परेशान करते नज़र आने लगे
शायद डायरेक्टर को राजकुमार उर्फ़ मंटो को नाकारा, स्मॉल टाउन सोच समझ और दिशा हीन दिखाने का सबसे आसान तरीका यही लगा… और नुसरत बरूचा की एंट्री को जस्टिफाई करने का भी… मुझे दोनों ही बहुत बचकाने लगे…
कहानी में दम था, “चक दे इंडिया”, से बेहतर बन सकती थी… पर नुसरत का किरदार सिरे से गैर ज़रूरी लगा… और मुसीबत यह कि नुसरत उर्फ नीलू की हरयाणवी बोली, इरिटेट ज़्यादा कर रही थी, इंप्रेस कम। गलती नुसरत की नहीं, वह इस रोल के लिए ही अनफिट थीं। Sophisticated, refined looks के साथ ठेठ देसी पोशाक और भाषा को वे बिल्कुल भी नहीं निभा पाईं… और तिस पर निर्देशक हैं कि किसी न किसी तरह उन्हें रेलेवेंट बनाने पर जुटे रहे… ड्रिंकिंग से लेकर लव ट्राइएंगल तक, बेमतलब ही मंटो और नीलू की लव स्टोरी को गियर में डालने का प्रयास किया जाता रहा!
जबकि असल मुद्दा, जो कि स्पोर्ट्स कॉम्पिटिशन और मंटो के ज़िम्मेदार बनने का था, कहीं पीछे छूटता गया… हालांकि जैसे ही वह मुखर हुआ, फिल्म की गति और रोमांच में काफ़ी बढ़ोतरी हुई… सबसे मज़ेदार और इंप्रेसिव सीन, प्लेग्राउंड में ही होने थे और वहीं हुए, बस कहानीकार और निर्देशक बीच बीच में इस बात को भूलते नज़र आए…
खैर मैंने मूवी पूरी देखी और बीच बीच में खूब हंसी भी, सो बिल्कुल बेकार तो नहीं कहूंगी… पर छलांग की छलांग जितनी ऊंची हो सकती थी, उतनी हो नहीं पाई… और अफ़सोस यह कि इसमें किसी भी एक्टर की कोई गलती नहीं… सब अपना बेस्ट ही देकर गए, बस स्क्रिप्ट में पॉसिबिलिटी ही ज़रा कम थी वैसे लक्ष्मी के बहुत बुरे रिव्यू पढ़ चुकी हूं, सो अक्षय पर टाइम वेस्ट करने की बजाय, राव की छोरागिरी का लुत्फ़ उठाना बेहतर लगा… चाहें तो आप भी लॉन्ग वीकेंड का फ़ायदा उठा सकते हैं, बस 70 किलो के आदमी से उम्मीद 70 की ही रखियेगा, 150 तक तो बेचारा झांक भी नहीं पाया… अनुपमा सरकार
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