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Channel: Scribbles of Soul
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तलाक़

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हमारे समाज में पिछले कुछ समय में तलाक़ की संख्या में तेज़ी से बढ़ोतरी हुई है। पर क्या इस बढ़ोतरी का ठीकरा हमें पाश्चात्य संस्कृति पर थोप देना चाहिए या फिर अपने ही समाज में कहीं कुछ ऐसा है, जिस पर ध्यान देने की ज़रूरत है?

आजकल तलाक़ होते हैं क्योंकि अब ज़्यादातर पति पत्नी जिनकी आपस में नही बनती, कानून का सहारा लेकर अलग होने लगे हैं.. पहले समाज में बदनामी के डर से सालों तक कटु रिश्तों को भी झेल लिया जाता था.. अलग होने पर आर्थिक और सामाजिक दिक्कतों को झेलना पड़ता था और सिर्फ इसलिए दमघोंटू रिश्तों में बने रहना एक मज़बूरी थी.. वैसे भी औरतों को इतना दबा कर रखा था कि वे अपने हित की सोच ही नहीं पाती थीं, और पूरी ज़िन्दगी चुप्पी लगाकर बिता देती थीं.. हालांकि पुरुष भी कई बार मानसिक वेदना झेलते हुए भी रिश्ते में बने रहते थे.. तो ऐसा तो नहीं कि अचानक ही पुरुष स्त्री का रिश्ता कटु हुआ है, बहुत कुछ पहले भी होता था.. पर अब चूंकि मामले घर की चारदीवारी में नहीं दबाए जाते तो तलाक़ में बढ़ोतरी दिखनी ही है..

पर ये सिर्फ एक पहलू है, तलाक़ का दूसरा बड़ा कारण निजी रिश्तों में विलुप्त मधुरता है.. बात कड़वी है, पर सच है कि आजकल हम लोग संवेदनहीन होते चले जा रहे हैं, स्त्री, पुरुष, बच्चे, बूढ़े सभी.. कोई किसी की बात सुनना, समझना नहीं चाहता.. कई बार कुछ मामलों में शांत रह पाना, असरदायक होता है.. और वहीं हद से ज़्यादा चुप रह जाना घातक.. दोनों ही पहलुओं पर गौर करने की ज़रूरत है..

पति पत्नी में आपसी सम्मान और सहनशीलता की कमी है.. पहले ये जन्म जन्म का रिश्ता माना जाता था, सो कुछ हद तक सहन किया जाता था.. पर अब हमारे मूल्य वैसे नहीं रहे.. आज सब कुछ dispensable है.. हम काफी हद तक अपनी भावनाओं से कट चुके हैं.. शायद पहले जिन एहसासों को दबाकर रखा गया, वे इतने कुंठित हो चुके कि अब प्रेम, प्रणय, संसर्ग हमारे लिए अपना महत्व खो चुके. use n throw पॉलिसी, कपड़ों, चीज़ों ही नहीं मानवीय रिश्तों के लिए भी इस्तेमाल होने लगी है..

अफसोस कि अब हर जगह समन्वयता का अभाव है और उधर ही ऐसा दिखता है मानो, ऑप्शन्स बहुत हों, “तू नहीं तो और सही” वाली टेंडेंसी, प्रेम को ही गहरा नहीं होने देती.. जब प्रेमी प्रेमिका ही एक दूसरे के प्रति वफादार नहीं दिखते तो ज़ाहिर है कि हमारे अंदर कहीं कुछ तो कमी है.. प्रेम विवाह हो या अरेंज्ड मैरिज, प्रेम सम्बन्धों का विफल होना, जतलाता है कि हम अपनी भावनाओं के प्रति ईमानदार नहीं.. फिर ऐसे में विवाह का चल पाना, जहां रिश्ते भी दूसरों ने बनवाए और समाज की वजह से शादी की गई, मुश्किल तो होगा ही..

तिस पर हमारे यहां शादी को प्रेम सम्बन्ध नहीं सामाजिक व्यवहार और आर्थिक विनिमय अधिक माना जाता है.. लड़का लड़की चुनने से लेकर, विवाह होने तक के दौरान किए गए मोल भाव और एक दूसरे को नीचा दिखाने की टेंडेंसी भी बहुत हद तक ज़िम्मेदार है, जिसके चलते नींव ही गलत पड़ती है.. कभी कन्या तो कभी वर पक्ष अपने निजी स्वार्थों के चलते पति पत्नी की आपस में बनने नहीं देते.. और जो रिश्ता एक दूसरे का साथ देते हुए निभाना था, प्रतिद्वंदियों की तरह शुरु होता है.. पाखंड और ढोंग की नींव पर मज़बूत इमारत खड़ी हो भी कैसे! तिस पर ईगो और सेलफिश होना तो हमारी प्रवृति बनती ही जा रही है.. कारण एक नहीं, अनेक हैं, गहन विश्लेषण मांगता है ये विषय, सिर्फ तलाक़ नहीं रिश्तों को उलट पुलट कर देखने की ज़रूरत है..

तलाक़ केवल रिज़ल्ट है, कारण तो समाज और परिवार के बिखराव में छुपा है! अनुपमा सरकार


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